नदियों का मान , इस देश की आन


ओ गङ्गा की निर्मल लहर ,
जा, ले जा हमारी पुकार,
ओ जमुना, तू बहती जा,
पर्वत शिखर, से नगर नगर 
मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा,
हर लहर पर पुकारे,
इस देश की धारा,
लेते जाओ हमारी दुआ,
स्वच्छ बहो, निर्मल रहो,
इस देश की मिट्टी
और हर एक प्राणी
को देना ये सँदेश,
जैसे गुरू के ज्ञान की धारा,
धोती हर मन से द्वेश
जैसे – यज्ञ , मँत्रों का स्वर सुन्हरा
पर्यावरण में करता उजाला,
जैसे वेद, ग्रन्थ, गीता का ज्ञान
से विचार धारा होती महान
सँग सँत, पीर , ऋषि, अवतार
हम आत्म ज्ञान तक होते पार,
ध्यान से सम्यक ज्ञान
में होता उजागर सत्व,
और अन्तर मन के पर्मसत्य से,
हर प्राणी होता अवगत् |
वैसे ही अन्तकाल तक,
धोती रहो पाप हमारे,
इस देश की सँजीवनी बन,
हर यात्री के सँग,
पार करना , भवसागर के किनारे,
ओ मँ गँगा , ओ माँ जमुना,
हमारे पाप धोते धोते ,
मैली मत हो जाना,
जागो देश वासियो,
पुकारती माँ के आसुओं की धारा ,
स्वच्छता में रहो,
अपनी माँ का बनो सहारा,
फिर निर्मल बनाओ यह आँचल
पोषण किया जिसने तुम्हारा
लो स्वच्छता का सँकल्प
उस पर रहो अटल |

- Punam Jain.

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